अर्धनारीनटेश्वर स्तोत्र आदि शंकराचार्य द्वारा रचित एक दिव्य स्तुति है, जिसमें भगवान शिव और माता पार्वती के संयुक्त स्वरूप अर्धनारीश्वर की महिमा का वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र इस सत्य को दर्शाता है कि शिव और शक्ति एक-दूसरे के पूरक हैं—शक्ति के बिना शिव केवल एक निष्क्रिय सत्ता हैं, और शिव के बिना शक्ति दिशाहीन।
इस स्तोत्र में भगवान शिव और माता पार्वती के विरोधाभासी लेकिन पूरक गुणों का सुंदर वर्णन किया गया है। एक ओर माता पार्वती सौंदर्य, कोमलता और सृजन की प्रतीक हैं, तो दूसरी ओर भगवान शिव वैराग्य, भस्म, तांडव और संहार के अधिष्ठाता हैं। यह स्तोत्र बताता है कि कैसे ये दोनों शक्तियाँ मिलकर संपूर्ण सृष्टि की गति को संचालित करती हैं।
अर्धनारीनटेश्वर स्तोत्र के पाठ का महत्व (Importance of reciting Ardhanarinateshwar Stotra)
- यह स्तोत्र शिव और शक्ति की उपासना के लिए अत्यंत प्रभावी है।
- इसके नियमित पाठ से जीवन में संतुलन, शांति और समृद्धि आती है।
- यह स्तोत्र भक्तों को शिव-शक्ति के संयुक्त आशीर्वाद से सभी संकटों और कष्टों से रक्षा प्रदान करता है।
- शिवरात्रि, नवरात्रि, सावन मास और अन्य पावन अवसरों पर इसका पाठ विशेष फलदायी माना जाता है।
अर्धनारीश्वर स्तोत्र – अर्धनारीनटेश्वर स्तोत्र
1.
चाम्पेयगौरार्धशरीरकायै कर्पूरगौरार्धशरीरकाय ।
धम्मिल्लकायै च जटाधराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ।।
जो अर्ध भाग में चम्पा पुष्प के समान गौरवर्ण वाली देवी पार्वती हैं और शेष भाग में कपूर के समान उज्ज्वल भगवान शिव हैं, जो एक ओर सुन्दर गुँथे हुए केश धारण किए हुए हैं और दूसरी ओर जटाजूट से विभूषित हैं, ऐसे शिव-शक्ति के संयुक्त स्वरूप को मेरा नमन।
2.
कस्तूरिकाकुंकुमचर्चितायै चितारज:पुंजविचर्चिताय ।
कृतस्मरायै विकृतस्मराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ।।
जो एक ओर कस्तूरी और कुंकुम से अलंकृत हैं, तो दूसरी ओर चिता-भस्म से सुशोभित हैं, जो एक ओर प्रेम और सौंदर्य की अधिष्ठात्री हैं, तो दूसरी ओर कामदेव को भस्म करने वाले हैं, ऐसे अर्धनारीश्वर स्वरूप को मेरा प्रणाम।
3.
चलत्क्वणत्कंकणनूपुरायै पादाब्जराजत्फणीनूपुराय ।
हेमांगदायै भुजगांगदाय नम: शिवायै च नम: शिवाय ।।
जिनके एक ओर कंकण और नूपुरों की मधुर ध्वनि गूँज रही है, तो दूसरी ओर सर्पों की फुफकार से भयावह नाद हो रहा है, जिनकी भुजाओं में एक ओर स्वर्ण के आभूषण दमक रहे हैं, तो दूसरी ओर सर्प ही अलंकरण बने हुए हैं, ऐसे शिव-शक्ति के अविभाज्य स्वरूप को प्रणाम।
4.
विशालनीलोत्पललोचनायै विकासिपंकेरुहलोचनाय ।
समेक्षणायै विषमेक्षणाय नम: शिवायै च नम: शिवाय ।।
जिनके नेत्र विशाल और नीले कमल के समान हैं, जबकि शिव के नेत्र सूर्य, चन्द्र और अग्नि के रूप में तीन हैं, जिनका दृष्टिकोण सौम्य और शांत है, जबकि शिव की दृष्टि संहारकारी हो सकती है, ऐसे अर्धनारीश्वर स्वरूप को नमन।
5.
मन्दारमालाकलितालकायै कपालमालांकितकन्धराय ।
दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ।।
जिनके केशपाश में मन्दार पुष्पों की माला सुशोभित है, और जिनके कंठ में मुंडमाल विराजमान है, जो दिव्य वस्त्र धारण किए हुए हैं, जबकि शिव संपूर्ण रूप से दिगम्बर स्वरूप में स्थित हैं, ऐसे शिव-शक्ति के अव्यक्त स्वरूप को मेरा प्रणाम।
6.
अम्भोधरश्यामलकुन्तलायै तडित्प्रभाताम्रजटाधराय ।
निरीश्वरायै निखिलेश्वराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ।।
जिनके घुँघराले केश काले बादलों के समान घने हैं, और शिव की जटाएँ बिजली की चमक के समान लालिमा लिए हुए हैं, जो सर्वथा स्वतंत्र हैं, जबकि शिव संपूर्ण जगत के स्वामी हैं, ऐसे दिव्य स्वरूप को मेरा प्रणाम।
7.
प्रपंचसृष्ट्युन्मुखलास्यकायै समस्तसंहारकताण्डवाय ।
जगज्जनन्यै जगदेकपित्रे नम: शिवायै च नम: शिवाय ।।
जिनके लास्य नृत्य से सृष्टि का निर्माण होता है, और शिव के तांडव से संहार, जो इस संसार की माता हैं और जो समस्त जगत के पिता हैं, ऐसे अनन्य स्वरूप को मेरा नमन।
8.
प्रदीप्तरत्नोज्ज्वलकुण्डलायै स्फुरन्महापन्नगभूषणाय ।
शिवान्वितायै च शिवान्विताय नम: शिवायै च नम: शिवाय ।।
जो जगमगाते रत्नों से जड़े कुण्डलों से विभूषित हैं, और जिनका आभूषण फुफकारते हुए महा सर्प हैं, जो शिव के साथ अविभाज्य रूप से स्थित हैं और शिव जिनसे समस्त शक्ति प्राप्त करते हैं, ऐसे पावन स्वरूप को प्रणाम।
स्तुति का फल
एतत् पठेदष्टकमिष्टदं यो भक्त्या स मान्यो भुवि दीर्घजीवी ।
प्राप्नोति सौभाग्यमनन्तकालं भूयात् सदा तस्य समस्तसिद्धि: ।।
जो इस अष्टक का भक्तिपूर्वक पाठ करता है, वह जगत में सम्मानित होता है और दीर्घायु प्राप्त करता है, उसे अनन्तकाल तक सौभाग्य की प्राप्ति होती है और वह समस्त सिद्धियों का अधिकारी बनता है।
शक्ति के बिना शिव अपूर्ण हैं
शिव अपनी शक्ति के साथ समस्त कार्य करने में सक्षम हैं, परंतु शक्ति के बिना वे निष्क्रिय हो जाते हैं। इसलिए शक्ति की आराधना के बिना कोई भी व्यक्ति शिव की पूर्ण कृपा प्राप्त नहीं कर सकता। ब्रह्मा, विष्णु और अन्य देवताओं सहित संपूर्ण ब्रह्मांड भी उसी शक्ति की स्तुति करता है, और उसी की कृपा से जीवन का कल्याण होता है।
॥ इति आदिशंकराचार्य विरचित अर्धनारीनटेश्वरस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥