अपराजिता स्तोत्र: शक्ति और विजय का स्तोत्र
अपराजिता शब्द का अर्थ है “जो कभी पराजित न हो”। यह स्तोत्र देवी दुर्गा के एक विशेष रूप अपराजिता देवी की स्तुति करता है, जो अपने भक्तों को हर कठिनाई से बचाती हैं और उन्हें अपराजेय शक्ति प्रदान करती हैं। इस स्तोत्र का पाठ करने से जीवन की हर बाधा को पार किया जा सकता है, चाहे वह शत्रुओं से जुड़ी हो, कानूनी समस्याएं हों, प्रतियोगी परीक्षाएं हों या फिर आध्यात्मिक विकास का मार्ग हो।
अपराजिता देवी का महत्व
अपराजिता देवी को महाशक्ति का स्वरूप माना जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, देवासुर संग्राम के दौरान जब देवी दुर्गा ने असुरों का संहार किया, तब उन्होंने अपनी एक विशेष शक्ति के रूप में अपराजिता देवी का अवतार लिया। अपराजिता देवी की उपासना करने वाले साधक को कभी हार का सामना नहीं करना पड़ता और वह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है।
त्रेता युग में जब भगवान राम ने रावण का वध किया, तब यह दिन विजयदशमी के रूप में प्रसिद्ध हुआ। यह भी माना जाता है कि इस दिन अपराजिता देवी की विशेष पूजा करने से अपराजेय शक्ति प्राप्त होती है और जीवन के हर युद्ध में विजय मिलती है।
अपराजिता स्तोत्र के पाठ की विधि
- इस स्तोत्र का पाठ किसी भी शुभ दिन, विशेष रूप से शुक्रवार या नवरात्रि के समय शुरू किया जा सकता है।
- पाठ करने के लिए पूर्व या दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- लाल रंग के कपड़े पहनें और लाल ऊनी आसन का उपयोग करें।
- अपने सामने माँ अपराजिता की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- दीपक में सरसों या तिल के तेल का प्रयोग करें और माँ को लाल फूल अर्पित करें।
- इस स्तोत्र का 21 दिन तक नियमित पाठ करें, प्रत्येक दिन कम से कम 8 बार।
- पाठ के बाद माँ अपराजिता से अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए प्रार्थना करें।
अपराजिता स्तोत्र के अद्भुत लाभ
- शत्रु बाधाओं से मुक्ति – यह स्तोत्र शत्रुओं द्वारा किए गए तंत्र-मंत्र प्रभावों को निष्फल करता है।
- आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति – यह पाठ आत्मविश्वास और मानसिक शक्ति को बढ़ाता है।
- कानूनी समस्याओं का समाधान – यदि किसी पर कोर्ट केस या अन्य कानूनी मामले हैं, तो यह स्तोत्र उन्हें अनुकूल बना सकता है।
- प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता – विद्यार्थी इस स्तोत्र का पाठ करके अपनी बुद्धि और स्मरण शक्ति को तेज कर सकते हैं।
- विवाह और संतान प्राप्ति – विवाह में बाधा आने पर और संतान प्राप्ति के लिए यह स्तोत्र प्रभावी माना जाता है।
- स्वास्थ्य लाभ – गंभीर रोगों, जैसे हृदय रोग, कैंसर, और अन्य असाध्य बीमारियों में भी यह पाठ लाभकारी सिद्ध होता है।
- नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा – इस स्तोत्र के नियमित पाठ से घर और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- व्यवसाय और करियर में उन्नति – व्यापार और नौकरी में सफलता प्राप्त करने के लिए इसका पाठ अत्यंत लाभकारी है।
अपराजिता स्तोत्र
विनियोग:
ॐ अस्या: वैष्ण्व्या: पराया: अजिताया: महाविद्ध्या: वामदेव-ब्रहस्पतमार्कणडेया ऋषयः। गायत्री, उष्णिक, अनुप, बृहती छंद:। लक्ष्मी-नृसिंहो देवता।
ॐ क्लीं श्रीं ह्रीं बीजं, हुं शक्तिः। सकल कामना सिद्ध्यर्थे अपराजिता विद्या मंत्र पाठे विनियोगः।
अपराजिता देवी ध्यान:
ॐ नीलोत्पलदलश्यामां भुजंगाभरणान्विताम।
शुद्ध स्फटिकसंकाशां चन्द्रकोटिनिभाननाम॥
शंखचक्रधरां देवीं वैष्णवीं अपराजिताम।
बालेंदुशेखरां देवीं वरदाभयदायिनीं॥
मार्कंडेय उवाच:
श्रृणुष्व मुनयः सर्वे सर्वकामार्थसिद्धिदाम।
असिद्धसाधनीं देवीं वैष्णवीं अपराजिताम्॥
विष्णोरियमानुपप्रोक्ता सर्वकामफलप्रदा।
सर्वसौभाग्यजननी सर्वभीतिविनाशिनी॥
सर्वैश्च पठिता सिद्धा विष्णोः परमवल्लभा॥
नानया सदृशं किंचिद्दुष्टानां नाशनं परम्।
विद्या रहस्या, कथिता वैष्ण्व्येषापराजिता॥
पठनीया प्रशस्ता वा साक्षात्स्त्वगुणाश्रया॥
ॐ शुक्लांबरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम्।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत्सर्वविघ्नोपशान्तये॥
अथातः संप्रवक्ष्यामी हृद्याभ्यामपराजिताम्।
यथाशक्तिमार्मिके वत्स रजोगुणमयी मता॥
सर्वसत्त्वमयी साक्षात्सर्वमन्त्रमयी च या।
या स्मृता पूजिता जप्ता न्यस्ता कर्मणि योजिता॥
सर्वकामदुधा वत्स श्रृणुश्वैतां ब्रवीमिते।
यस्या: प्रणश्यते पुष्पं गर्भो वा पतते यदि॥
गर्भिणी जीववत्सा स्यात्पुत्रिणी स्यान्न संशयः।
भूर्जपत्रे त्विमां विद्याम् लिखित्वा गंधचंदनैः॥
रणे राजकुले दुते नित्यं तस्य जयो भवेत्।
शस्त्रं वारयते हर्षा समरे काण्डदारुणे॥
गुल्मशूलाक्षिरोगाणां नाशिनी सर्वदेहिनाम्।
इत्येषा कथिता विद्या अभयाख्या अपराजिता॥
एतस्या: स्मृतिमात्रेण भयं क्वापि न जायते।
नोपसर्गा न रोगाश्च न योधा नापि तस्कराः॥
न राजानो न सर्पाश्च न द्वेष्टारो न शत्रवः।
यक्षराक्षसवेताला न शाकिन्यो न च ग्रहाः॥
अग्नेर्भयं न वाताच्च न समुद्रान्न वै विषात्।
कामणं वा शत्रुकृतं वशीकरणमेव च॥
उच्चाटनं स्तम्भनं च विद्वेषणमथापि वा।
न किंचिदप्रभवेतत्र यत्रैषा वर्ततेऽभया॥
हृदय विन्यसेदेतां ध्यायेद्देवीं चतुर्भुजाम्।
रक्तमाल्याम्बरधरां पद्मरागसमप्रभाम्॥
साधकेभ्यः प्रयच्छन्तीं मंत्रवर्णामृतान्यपि।
नातः परतरं किंचिद्वशीकरणमनुत्तमम्॥
प्रातः कुमारिकाः पूज्याः खाद्यैराभरणैरपि।
तदिदं वाचनीयं स्यात्तत्प्रिया प्रियते तु माम्॥
ॐ अथातः संप्रक्ष्यामी विद्यां अपि महाबलाम्।
सर्वदुष्टप्रशमनीं सर्वशत्रुक्षयङ्करीम्॥
दारिद्र्यदुःखशमनीं दुभार्ग्यव्याधिनाशिनीम्।
भूतप्रेतपिशाचानां यक्षगंधर्वराक्षसानाम्॥
डाकिनी शाकिनी स्कन्द कुष्मांडानां च नाशिनीम्।
महारौद्रीं महाशक्तिं संगः प्रत्ययकारिणीम्॥
गोपनीयं प्रयत्नेन सर्वस्वं पार्वतीपतेः।
तामहं ते प्रवक्ष्यामि सावधानमनाः श्रृणु॥
॥ इति अपराजिता स्तोत्रम् ॥
अपराजिता स्तोत्र हिंदी अर्थ | Aparajita Stotra In Hindi
ॐ अपराजिता देवी को प्रणाम। यह वैष्णवी अपराजिता महाविद्या है, जिनके ऋषि वामदेव, बृहस्पति और मार्कण्डेय हैं। इसके छंद गायत्री, उष्णिग्, अनुष्टुप और बृहति हैं। देवी लक्ष्मी और भगवान नरसिंह इस स्तोत्र के देवता हैं। इसका बीज मंत्र “क्लीं”, शक्ति “हुं” है और इसका विनियोग सभी इच्छाओं की पूर्ति के लिए किया जाता है।
शंख-चक्र धारण करने वाली, नीलकमल के समान श्यामवर्ण, तेजस्वी और स्फटिक के समान उज्ज्वल आभा वाली देवी अपराजिता को प्रणाम। इनके मुखमंडल की आभा सहस्र चंद्रमाओं के समान है। उनके बालों में चंद्रमा सुशोभित है। महान तपस्वी मार्कण्डेय ऋषि ने इस स्तोत्र की रचना की।
मार्कण्डेय ऋषि बोले—हे मुनियो! यह स्तोत्र अपराजिता देवी की महिमा का वर्णन करता है और समस्त संकटों को नष्ट करने वाला है, इसे ध्यानपूर्वक सुनो।
ॐ नारायण, वासुदेव और अनंत भगवान को नमन। जो सहस्र सिर वाले हैं, क्षीरसागर में शयन करते हैं, शेषनाग को शय्या बनाते हैं और गरुड़ को अपना वाहन मानते हैं, उन विष्णु भगवान को प्रणाम। वे अमोघ, अजन्मा, अपराजित और पीतांबरधारी हैं।
भगवान विष्णु के विभिन्न स्वरूपों को नमन: वासुदेव, संकर्षण, प्रद्युम्न, अनिरुद्ध, हयग्रीव, मत्स्य, कूर्म, वाराह, नृसिंह, वामन, त्रिविक्रम, श्रीधर, राम, बलराम, परशुराम—ये सभी स्वरूप वरदायक हैं।
सुरक्षा एवं संकट नाशक प्रार्थना: हे प्रभु, असुर, दैत्य, यक्ष, राक्षस, भूत-प्रेत, पिशाच, शाकिनी, डाकिनी, ग्रहबाधाओं को नष्ट कर दीजिए। उन्हें जलाइए, भस्म कीजिए, चूर्ण कीजिए और संहार कीजिए। आपके शंख, चक्र, गदा, वज्र, शूल और हल से समस्त दुष्ट शक्तियाँ नष्ट हों।
विजय एवं रक्षा हेतु स्तुति: सहस्रबाहु, जय-विजय, अमित, अजित, अपराजित, अप्रतिहत, सहस्त्र नेत्रधारी, विश्वरूप भगवान, मधुसूदन, महावराह, महापुरुष, वैकुंठ, नारायण, गोविंद, दामोदर, हृषिकेश—हे प्रभु! आप समस्त दुष्ट आत्माओं का नाश करें, समस्त बंधनों से मुक्त करें, सभी ग्रहों के दोषों को समाप्त करें और सभी भय को नष्ट करें।
इस स्तोत्र के प्रभाव: यह स्तोत्र भगवान विष्णु की दिव्य विद्या है, जो सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाली और समस्त भय को हरने वाली है। यह दुष्टों का नाश करने के लिए सिद्ध है।
जो भी इस अपराजिता स्तोत्र को श्रद्धापूर्वक पढ़ता, सुनता या स्मरण करता है, उसे शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से कोई कष्ट नहीं होता। इस स्तोत्र के प्रभाव से अग्नि, जल, वायु, शस्त्र, शत्रु, रोग, शोक, भय, तंत्र-मंत्र, ग्रहबाधा और सभी तरह के संकट दूर हो जाते हैं।
जो इस स्तोत्र को भोजपत्र पर चंदन से लिखकर धारण करता है, वह अद्भुत सौभाग्य, संतान सुख और जीवन की समस्त सिद्धियों को प्राप्त करता है।
युद्ध और संकटों में विजय: राज्य संकट, शत्रु भय, चोरी, विष, युद्ध, अंधकार, भूत-प्रेत बाधाओं से मुक्ति हेतु यह स्तोत्र अमोघ है। जो इसे धारण करता है, वह किसी भी स्थिति में पराजित नहीं होता।
रोगनाशक प्रभाव: गुल्मरोग, शूल, नेत्ररोग, सिरदर्द, ज्वर आदि रोगों से मुक्ति मिलती है। इस मंत्र का स्मरण करने मात्र से सभी भय समाप्त हो जाते हैं।
जहाँ यह स्तोत्र पढ़ा जाता है, वहाँ कोई भी नकारात्मक शक्ति प्रवेश नहीं कर सकती। यह इतना शक्तिशाली है कि केवल लिखित रूप में पास रखने मात्र से भी सभी संकट दूर रहते हैं।
जो भी इस स्तोत्र का नित्य पाठ करता है, उसे तीनों लोकों में कोई हानि नहीं होती। यहाँ तक कि यमराज भी ऐसे व्यक्ति के पास जाने से डरते हैं।
गुप्त रहस्य: यह स्तोत्र अत्यंत गोपनीय एवं महाशक्तिशाली है। इसे केवल योग्य साधकों को ही प्रदान करना चाहिए।
अपराजिता देवी, जो मेघों के समान श्यामवर्ण हैं, विद्युत के समान उनके केश चमकते हैं और उनके तीन नेत्र सूर्य की भांति दीप्त हैं—ऐसी देवी हमें आशीर्वाद प्रदान करें।
॥ श्री अपराजिता देवी की जय हो ॥