नवग्रह स्तोत्र महर्षि व्यास द्वारा रचित एक प्रसिद्ध स्तोत्र है, जिसमें नौ ग्रहों—सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु—की स्तुति की गई है। यह स्तोत्र नवग्रहों की शांति, अनुकूल प्रभाव और जीवन में शुभ फल प्राप्त करने के लिए पाठ किया जाता है।
महत्व और लाभ (Importance and Benefits):
✅ यह स्तोत्र ग्रह दोषों को शांत करने में सहायक माना जाता है।
✅ ज्योतिष में जिनकी कुंडली में किसी ग्रह की अशुभ स्थिति है, उन्हें इसका पाठ करने से राहत मिलती है।
✅ कार्यों में सफलता, मानसिक शांति और समृद्धि के लिए भी इसका पाठ किया जाता है।
विधि (Method:):
- प्रातः स्नान करके शांत मन से इस स्तोत्र का पाठ करें।
- शनिवार और मंगलवार को विशेष रूप से शनि एवं मंगल ग्रह के लिए इसका पाठ करना लाभदायक होता है।
- नवग्रह यंत्र या दीपक जलाकर इसे पढ़ने से ग्रहों की कृपा प्राप्त होती है।
नवग्रह स्तोत्र (Navagraha Stotra):
(सूर्य)
“जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महद्युतिं।
तमोरिसर्व पापघ्नं प्रणतोस्मि दिवाकरं।।”
हिंदी अर्थ: जो जपा पुष्प (गुड़हल के फूल) की भांति अरुण आभा से युक्त, महान तेजस्वी, समस्त अंधकार और पापों का नाश करने वाले तथा महर्षि कश्यप के पुत्र हैं, उन सूर्य देव को मैं नमन करता हूँ।
(चंद्र)
“दधिशंख तुषाराभं क्षीरोदार्णव संभवं।
नमामि शशिनं सोंमं शंभोर्मुकुट भूषणं।।”
हिंदी अर्थ: जो दधि (दही), शंख (शंख का मोती) तथा हिम (बर्फ) के समान उज्ज्वल, क्षीर सागर (दूध के समुद्र) से उत्पन्न, भगवान शिव के मुकुट की शोभा बढ़ाने वाले तथा अमृतमय हैं, उन चंद्र देव को मैं प्रणाम करता हूँ।
(मंगल)
“धरणीगर्भ संभूतं विद्युत्कांतीं समप्रभं।
कुमारं शक्तिहस्तंच मंगलं प्रणमाम्यहं।।”
हिंदी अर्थ: जो माता पृथ्वी (धरणी) के गर्भ से उत्पन्न, विद्युत (बिजली) के समान कांतियुक्त, तेजस्वी, कुमार (बालक रूप) स्वरूप और हाथ में शक्ति (शक्तिशाली अस्त्र) धारण किए हुए हैं, उन मंगल देव को मैं प्रणाम करता हूँ।
(बुध)
“प्रियंगुकलिका शामं रूपेणा प्रतिमं बुधं।
सौम्यं सौम्य गुणपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहं।।”
हिंदी अर्थ: जो प्रियंगु लता (एक औषधीय पौधा) की कली के समान हरितवर्ण (हरा रंग), अनुपम रूप वाले, सौम्य स्वभाव से युक्त और अत्यंत बुद्धिमान हैं, उन बुध ग्रह को मैं प्रणाम करता हूँ।
(गुरु – बृहस्पति)
“देवानांच ऋषिणांच गुरुंकांचन सन्निभं।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिं।।”
हिंदी अर्थ: जो देवताओं और ऋषियों के गुरु, स्वर्ण (सोने) के समान प्रभायुक्त, बुद्धि (ज्ञान) के प्रतीक और तीनों लोकों के स्वामी हैं, उन बृहस्पति को मैं प्रणाम करता हूँ।
(शुक्र)
“हिमकुंद मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरूं।
सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहं।।”
हिंदी अर्थ: जो हिमकुंद (सफेद कुमुद) पुष्प तथा मृणाल (कमल का तना) के तंतु के समान उज्ज्वल, दैत्यों (असुरों) के परम गुरु, समस्त शास्त्रों के ज्ञाता तथा महर्षि भृगु के वंशज (भार्गव) हैं, उन शुक्र देव को मैं प्रणाम करता हूँ।
(शनि)
“नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजं।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्वरं।।”
हिंदी अर्थ: जो नीलमणि (नीलम रत्न) के समान आभायुक्त, सूर्य (रवि) के पुत्र, यमराज के अग्रज (बड़े भाई) और माता छाया तथा सूर्य से उत्पन्न हैं, उन शनिदेव को मैं नमन करता हूँ।
(राहु)
“अर्धकायं महावीर्यं चंद्रादित्य विमर्दनं।
सिंहिका गर्भसंभूतं तं राहूं प्रणमाम्यहं।।”
हिंदी अर्थ: जो अर्धशरीर (अधूरी काया) धारण किए हुए, महान पराक्रमी, सूर्य और चंद्रमा को ग्रसने (ग्रहण करने) वाले तथा सिंहिका (हिरण्यकशिपु की पत्नी) के गर्भ से उत्पन्न हैं, उन राहु को मैं प्रणाम करता हूँ।
(केतु)
“पलाशपुष्प संकाशं तारका ग्रह मस्तकं।
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहं।।”
हिंदी अर्थ: जो पलाश पुष्प (ढाक के फूल) के समान लाल आभायुक्त, ताराग्रहों (छायाग्रहों) में अग्रणी, रुद्रतत्व (शिव के अंश) से युक्त और भयंकर (प्रचंड) स्वरूप वाले हैं, उन केतु को मैं प्रणाम करता हूँ।
फलश्रुति (पाठ करने का फल)
“इति व्यासमुखोदगीतं य पठेत सुसमाहितं
दिवा वा यदि वा रात्रौ विघ्नशांतिर्भविष्यति।।”
हिंदी अर्थ: भगवान वेद व्यास जी के मुख से प्रकट इस स्तुति को जो दिन में अथवा रात में एकाग्रचित होकर पाठ करता है, उसके समस्त विघ्न (बाधाएँ) शांत हो जाते हैं।
“नर, नारी, नृपाणांच भवेत् दु:स्वप्न नाशनं
ऐश्वर्यंमतुलं तेषां आरोग्यं पुष्टिवर्धनं।।”
हिंदी अर्थ: इसका पाठ करने वाले स्त्री, पुरुष और राजा सभी के दु:स्वप्न (भयावह सपनों) का नाश होता है। वे अपार ऐश्वर्य (धन-समृद्धि), उत्तम स्वास्थ्य (आरोग्य) और पुष्टि (शारीरिक-मानसिक बल) को प्राप्त करते हैं।