मां दुर्गा के छठे स्वरूप को कात्यायनी कहा जाता है, और उनकी पूजा शारदीय नवरात्रि के छठे दिन की जाती है। यह स्वरूप विशेष रूप से देवताओं और ऋषियों के कार्यों की सिद्धि के लिए प्रकट हुआ था। पुराणों के अनुसार, जब महर्षि कात्यायन ने घोर तपस्या कर मां दुर्गा का आह्वान किया, तो देवी ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उनके आश्रम में जन्म लिया। चूंकि महर्षि ने उन्हें अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया, इसलिए वे कात्यायनी कहलायीं। देवी कात्यायनी अधर्म का नाश करने वाली और धर्म की स्थापना करने वाली शक्ति मानी जाती हैं।
महिषासुर का अंत और शुम्भ-निशुम्भ का उत्पीड़न
महिषासुर के वध के बाद शुम्भ और निशुम्भ नामक दो असुरों ने अपने अहंकार में आकर देवताओं के अधिकार छीन लिए। उन्होंने इंद्र के तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया और नवग्रहों को भी बंधक बना लिया। इतना ही नहीं, वे अग्नि और वायु के कार्यों को स्वयं नियंत्रित करने लगे और देवताओं को अपमानित कर स्वर्ग से निष्कासित कर दिया।
इस विपत्ति के समय देवताओं ने अपराजिता देवी को स्मरण किया और हिमालय पर्वत पर जाकर विष्णुमाया स्वरूप की स्तुति की। उन्होंने भक्तिपूर्वक निम्नलिखित मंत्रों से देवी की आराधना की:
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः Namo devai maha devai – Durga Saptshati:
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:।
नम: प्रकृत्यै भदायै नियता: प्रणता: स्मताम्।।1।।
रौदायै नमो नित्यायै गौयैर् धात्रयै नमो नम:।
ज्योत्स्नायै चेन्दुरूपिण्यै सुखायै सततं नमो नम:।।2।।
कल्याण्यै प्रणतां वृद्धयै सिद्धयै कुमोर् नमो नम:।
नैऋर्त्यै भूभृतां लक्ष्म्यै शर्वाण्यै ते नमो नम:।।3।।
दुर्गार्य दुर्गपारार्य सारार्य सर्वकारिण्यै।
ख्यात्यै तथैव कृष्णायै धूम्रार्य सततं नम:।।4।।
अतिसौम्यातिरौदार्य नतास्तस्यै नमो नम:।
नमो जगत्प्रतिष्ठायै देव्यै कृत्यै नमो नम:।।5।।
या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दिता।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:।।6।।
या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्याभिधीयते।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:।।7।।
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:।।8।।
या देवी सर्वभूतेषु निदारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:।।9।।
या देवी सर्वभूतेषु क्षुधारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:।।10।।
या देवी सर्वभूतेषुच्छायारूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:।।11।।
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता :।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:।।12।।
देवी कात्यायनी की साधना और लाभ
तंत्र शास्त्रों में देवी कात्यायनी की साधना को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना गया है। विशेष रूप से, विवाह संबंधी बाधाओं को दूर करने में इनकी उपासना अत्यंत प्रभावशाली मानी जाती है। जिन कन्याओं के विवाह में विलंब हो रहा हो या विवाह में किसी प्रकार की बाधा आ रही हो, उन्हें कात्यायनी यंत्र की प्राण प्रतिष्ठा कराकर देवी के मंत्रों का निश्चित संख्या में जाप करना चाहिए। यह साधना शीघ्र विवाह के मार्ग को प्रशस्त करती है। यदि कोई स्वयं यह अनुष्ठान करने में असमर्थ हो, तो वे किसी योग्य कर्मकांडी ब्राह्मण से विधिपूर्वक अनुष्ठान करवाकर इसका लाभ प्राप्त कर सकते हैं।