सूर्य देव और छठी मैया की कृपा पाने के लिए शुभ मंत्र
छठ पूजा भारत के पूर्वी राज्यों, विशेष रूप से बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाने वाला एक पावन पर्व है। यह चार दिवसीय अनुष्ठान सूर्य देव और छठी मैया की उपासना के लिए समर्पित होता है। धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से भक्तों को सुख-समृद्धि, उत्तम स्वास्थ्य और संतान सुख का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
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छठ पूजा मंत्र (Chhath Puja Mantra)
छठ पूजा में सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करने का विशेष आध्यात्मिक महत्व है। ऐसा माना जाता है कि अर्घ्य प्रदान करते समय यदि भक्त श्रद्धा और भक्ति भाव से इन मंत्रों का जाप करें, तो सूर्य देव शीघ्र ही कृपा बरसाते हैं और मनोवांछित फल प्रदान करते हैं।
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छठ पूजा अर्घ्य मंत्र
सूर्य देव को अर्घ्य देते समय जाप करने योग्य मंत्र
- ॐ सूर्याय नमः।
- ॐ आदित्याय नमः।
- ॐ नमो भास्कराय नमः।
- ॐ घृणिं सूर्य्य: आदित्य:।
- ॐ ऐहि सूर्यदेव सहस्त्रांशो तेजो राशि जगत्पते। अनुकम्पय मां भक्त्या गृहणार्ध्य दिवाकर:।।
- ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणाय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।
इन मंत्रों का श्रद्धा और भक्ति भाव से जाप करने पर सूर्य देव शीघ्र प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों को सुख-समृद्धि, उत्तम स्वास्थ्य और मनोकामना पूर्ण होने का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
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छठ पूजा विधि | Chhath Puja Vidhi
चार दिवसीय छठ महापर्व की पावन विधि
छठ पूजा एक विशेष आध्यात्मिक अनुष्ठान है, जो चार दिनों तक पूरे विधि-विधान के साथ संपन्न किया जाता है। इस पर्व के प्रत्येक दिन का अपना अलग धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व होता है।
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1. पहला दिन – नहाय-खाय
छठ महापर्व की शुरुआत ‘नहाय-खाय’ से होती है, जिसे कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस दिन व्रती घर की शुद्धि और स्वच्छता का विशेष ध्यान रखते हैं। फिर वे पास के नदी, तालाब या किसी पवित्र जलस्रोत में स्नान कर वहाँ से जल लाकर अपने घर में उपयोग करते हैं। व्रतधारी इस दिन केवल एक बार सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं, जिसमें मुख्य रूप से चना दाल, कद्दू की सब्जी और अरवा चावल शामिल होता है।
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2. दूसरा दिन – खरना
खरना का दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को मनाया जाता है। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं और संध्या समय सूर्य को अर्घ्य देने के बाद विशेष प्रसाद ग्रहण करते हैं। प्रसाद में मुख्य रूप से गुड़ और गन्ने के रस से बनी खीर, रोटी और केले का सेवन किया जाता है। इस दिन के उपवास और पूजा के बाद ही व्रतधारी कठिन निर्जला व्रत का संकल्प लेते हैं।
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3. तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य
छठ पर्व का सबसे महत्वपूर्ण दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को आता है, जिसे ‘संध्या अर्घ्य’ कहा जाता है। इस दिन भक्त पूरे श्रद्धा भाव से विशेष प्रसाद, जैसे ठेकुआ, चावल के लड्डू (कचवनिया) आदि बनाते हैं। फिर बांस की टोकरी में नारियल, फल और पूजा की अन्य सामग्री रखकर वे घाट पर जाते हैं और डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। संध्या अर्घ्य का विशेष महत्व है क्योंकि इसमें अस्त होते सूर्य की आराधना की जाती है।
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4. चौथा दिन – उषा अर्घ्य
छठ पूजा का समापन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की भोर में ‘उषा अर्घ्य’ के साथ होता है। इस दिन सूर्योदय से पूर्व व्रती और उनके परिवार के सदस्य घाट पर पहुँचते हैं और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इसके बाद विधिवत पूजन किया जाता है और घाट की पूजा संपन्न की जाती है। पूजा संपन्न होने के बाद व्रती पारण कर व्रत समाप्त करते हैं, और प्रसाद सभी भक्तों में बाँटा जाता है।
इस प्रकार, छठ पूजा न केवल आध्यात्मिक उन्नति का पर्व है बल्कि यह प्रकृति, सूर्य और नदियों के प्रति हमारी आस्था और आभार प्रकट करने का एक दिव्य अवसर भी है।
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