
क्या आपने कभी सोचा है कि कोई व्यक्ति भूत, वर्तमान और भविष्य – तीनों को एक साथ कैसे देख सकता है?
क्या यह संभव है कि कोई “समय” के बंधन से मुक्त होकर जान सके कि कल क्या हुआ, आज क्या हो रहा है, और आने वाला कल क्या लेकर आएगा?
ऐसा ज्ञान केवल कल्पना नहीं, बल्कि पतंजलि योगसूत्र में वर्णित एक गहन सत्य है – जिसे कहा गया है “त्रिकालज्ञान”।
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त्रिकालज्ञान का रहस्य (The Mystery of Trikālajñāna)
“त्रिकालज्ञान” शब्द अपने आप में ही रहस्य और आश्चर्य से भरा है —
- त्रि = तीन
- काल = समय
- ज्ञान = जानना
अर्थात्, तीनों कालों का ज्ञान — भूत, वर्तमान और भविष्य का एक साथ साक्षात्कार।
यह कोई साधारण मानसिक शक्ति नहीं, बल्कि चेतना की पराकाष्ठा है।
पतंजलि योगसूत्र में इसका उल्लेख
पतंजलि मुनि ने विभूति पाद (Yoga Sutra 3.16) में कहा है —
“परिणामत्रयसंयमात् अतीतानागतज्ञानम्॥”
अर्थात् — जब योगी “परिणामत्रय” (धर्म, लक्षण और अवस्थापरिणाम) पर संयम करता है, तो उसे भूतकाल और भविष्य का ज्ञान हो जाता है।
यहाँ “संयम” का अर्थ है — धारणा, ध्यान और समाधि का संयुक्त अभ्यास।
जब साधक अपने मन को इतना सूक्ष्म और केंद्रित कर लेता है कि वह वस्तु के हर सूक्ष्म परिवर्तन को देख सके, तब उसके लिए समय एक रुकती हुई नदी की तरह दिखने लगता है।
परिणामत्रय क्या है? (The Three Transformations)
पतंजलि ने “परिणामत्रय” के रूप में वस्तु की तीन अवस्थाओं का उल्लेख किया है —
- धर्म परिणाम – वस्तु के स्वभाव का परिवर्तन
- लक्षण परिणाम – उसकी बाह्य अवस्था का परिवर्तन
- अवस्था परिणाम – उसकी समयानुसार स्थिति का परिवर्तन
इन तीनों पर जब योगी संयम करता है, तो वह वस्तु के अतीत और भविष्य के स्वरूप को भी समझ लेता है।
वह जान जाता है कि इस क्षण में वस्तु किस दिशा में विकसित हो रही है — यानी भविष्य क्या बनने वाला है।
त्रिकालज्ञान की सिद्धि कैसे होती है? (How This Power Arises)
यह कोई जादू नहीं बल्कि गहन साधना का परिणाम है।
योगी अपने मन को इतना शांत और सूक्ष्म बना लेता है कि वह वस्तुओं और घटनाओं के बीज स्वरूप को देख सकता है।
जब वह कारण को पहचान लेता है, तो परिणाम अपने आप उसके सामने खुलने लगता है — और वही भविष्य-दर्शन कहलाता है।
उदाहरण के लिए — जैसे कोई अनुभवी किसान मिट्टी देखकर कह देता है कि इस वर्ष कैसी फसल होगी, वैसे ही त्रिकालज्ञ योगी कर्म और परिणाम के सूक्ष्म सूत्रों को देखकर जान लेता है कि आगे क्या होगा।
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त्रिकालज्ञान का दार्शनिक अर्थ (Philosophical Insight)
योग दर्शन में “समय” कोई बाहरी वस्तु नहीं, बल्कि चित्त की अनुभूति है।
जब चित्त स्थिर हो जाता है, तो “समय” का अस्तित्व भी विलीन हो जाता है।
तब योगी देखता है कि —
भूत, वर्तमान और भविष्य — ये तीनों एक ही क्षण में विद्यमान हैं।
उसके लिए जीवन कोई सीधी रेखा नहीं, बल्कि एक गोलाकार चक्र बन जाता है जहाँ सब कुछ “अब” में है।
यह अनुभव समयातीत चेतना (Timeless Consciousness) कहलाता है।
आधुनिक विज्ञान से तुलना (Modern Scientific Parallel)
आधुनिक भौतिकी भी अब मानती है कि समय रैखिक नहीं है।
क्वांटम थ्योरी कहती है कि समय एक आयाम (dimension) है — यानी भूत, वर्तमान, और भविष्य एक साथ अस्तित्व में हैं, बस हमारी चेतना उसे क्रमवार अनुभव करती है।
योगी की चेतना जब सीमाओं से परे जाती है, तो वह इन्हें एक साथ देख सकता है — यही त्रिकालज्ञान है।
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सावधानी: सिद्धि में नहीं, मुक्ति में रुचि हो (Warning from Patanjali)
पतंजलि स्वयं चेतावनी देते हैं कि ऐसी सिद्धियाँ योग के मार्ग की उपलब्धियाँ हैं, लेकिन अंतिम लक्ष्य नहीं।
सूत्र 3.37:
“ते समाधावुपसर्गा व्युत्थाने सिद्धयः॥”अर्थात् — ये सिद्धियाँ समाधि में बाधा भी बन सकती हैं, यदि योगी उनमें आसक्त हो जाए।
अतः त्रिकालज्ञान कोई प्रदर्शन की वस्तु नहीं, बल्कि आत्म-जागरण की अवस्था है।
निष्कर्ष: जब समय एक दर्पण बन जाता है
जब योगी अपने भीतर पूर्ण शांति प्राप्त करता है, तो उसके लिए समय एक दर्पण बन जाता है —
जिसमें वह देख सकता है बीते हुए कर्मों की छाया, वर्तमान की दिशा, और भविष्य की संभावना।
त्रिकालज्ञान हमें यह सिखाता है कि समय कोई शत्रु नहीं, बल्कि चेतना की परीक्षा है।
जो स्वयं को जान लेता है, वह समय को भी जान लेता है —
और वही बन जाता है — त्रिकालज्ञ योगी, जो देखता है “सब कुछ — एक ही क्षण में।”


























































