चण्डी स्तोत्र देवी महामाया चण्डिका को समर्पित एक अत्यंत प्रभावशाली एवं दुर्लभ तांत्रिक स्तोत्र है।
इसमें देवी दुर्गा, काली, गौरी, त्रिपुरासुंदरी, बगलामुखी, भैरवी, नीलसुंदरी आदि शक्ति के विविध स्वरूपों की स्तुति की गई है।
यह स्तोत्र साधक को यह सिखाता है कि देवी के प्रसाद से वह सब प्राप्त किया जा सकता है जो संसार में दुर्लभ है — चाहे वह मंत्र सिद्धि हो, भक्ति, क्रिया, मुक्ति, या सर्वार्थ सिद्धि।
शिव की अर्धांगिनी, विश्व की आधारशक्ति, और समस्त ब्रह्मांड की जननी जगद्धात्री देवी इस स्तोत्र में स्वयं प्रकट होकर अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं।
यह स्तोत्र न केवल तांत्रिक दृष्टि से बल्कि भक्ति और मोक्ष मार्ग के लिए भी अत्यंत पवित्र और फलदायी माना गया है।
चण्डी स्तोत्र Chandi Stotram
दुर्ल्लभं मारिणींमार्ग दुर्ल्लभं तारिणींपदम्।
मन्त्रार्थ मंत्रचैतन्यं दुर्ल्लभं शवसाधनम्।।
श्मशानसाधनं योनिसाधनं ब्रह्मसाधनम्।
क्रियासाधनमं भक्तिसाधनं मुक्तिसाधनम्।।
तव प्रसादाद्देवेशि सर्व्वाः सिध्यन्ति सिद्धयः।।
नमस्ते चण्डिके चण्डि चण्डमुण्डविनाशिनी।
नमस्ते कालिके कालमहाभयविनाशिनी।।
शिवे रक्ष जगद्धात्रि प्रसीद हरवल्लभे।
प्रणमामि जगद्धात्रीं जगत्पालनकारिणीम्।।
जगत्क्षोभकरीं विद्यां जगत्सृष्टिविधायिनीम्।
करालां विकटां घोरां मुण्डमालाविभूषिताम्।।
हरार्च्चितां हराराध्यां नमामि हरवल्लभाम्।
गौरीं गुरुप्रियां गौरवर्णालंकार भूषिताम्।।
हरिप्रियां महामायां नमामि ब्रह्मपूजिताम्।
सिद्धां सिद्धेश्वरीं सिद्धविद्याधरगणैर्युताम्।
मंत्रसिद्धिप्रदां योनिसिद्धिदां लिंगशोभिताम्।।
प्रणमामि महामायां दुर्गा दुर्गतिनाशिनीम्।।
उग्रामुग्रमयीमुग्रतारामुग्रगणैर्युताम्।
नीलां नीलघनाश्यामां नमामि नीलसुंदरीम्।।
श्यामांगी श्यामघटितांश्यामवर्णविभूषिताम्।
प्रणमामि जगद्धात्रीं गौरीं सर्व्वार्थसाधिनीम्।।
विश्वेश्वरीं महाघोरां विकटां घोरनादिनीम्।
आद्यमाद्यगुरोराद्यमाद्यनाथप्रपूजिताम्।।
श्रीदुर्गां धनदामन्नपूर्णां पद्मा सुरेश्वरीम्।
प्रणमामि जगद्धात्रीं चन्द्रशेखरवल्लभाम्।।
त्रिपुरासुंदरी बालमबलागणभूषिताम्।
शिवदूतीं शिवाराध्यां शिवध्येयां सनातनीम्।।
सुंदरीं तारिणीं सर्व्वशिवागणविभूषिताम्।
नारायणी विष्णुपूज्यां ब्रह्माविष्णुहरप्रियाम्।।
सर्वसिद्धिप्रदां नित्यामनित्यगुणवर्जिताम्।
सगुणां निर्गुणां ध्येयामर्च्चितां सर्व्वसिद्धिदाम्।।
दिव्यां सिद्धि प्रदां विद्यां महाविद्यां महेश्वरीम्।
महेशभक्तां माहेशीं महाकालप्रपूजिताम्।।
प्रणमामि जगद्धात्रीं शुम्भासुरविमर्दिनीम्।।
रक्तप्रियां रक्तवर्णां रक्तबीजविमर्दिनीम्।
भैरवीं भुवनां देवी लोलजीह्वां सुरेश्वरीम्।।
चतुर्भुजां दशभुजामष्टादशभुजां शुभाम्।
त्रिपुरेशी विश्वनाथप्रियां विश्वेश्वरीं शिवाम्।।
अट्टहासामट्टहासप्रियां धूम्रविनाशीनीम्।
कमलां छिन्नभालांच मातंगीं सुरसुंदरीम्।।
षोडशीं विजयां भीमां धूम्रांच बगलामुखीम्।
सर्व्वसिद्धिप्रदां सर्व्वविद्यामंत्रविशोधिनीम्।।
प्रणमामि जगत्तारां सारांच मंत्रसिद्धये।।
इत्येवंच वरारोहे स्तोत्रं सिद्धिकरं परम्।
पठित्वा मोक्षमाप्नोति सत्यं वै गिरिनन्दिनी।।
कुजवारे चतुर्द्दश्याममायां जीववासरे।
शुक्रे निशिगते स्तोत्रं पठित्वा मोक्षमाप्नुयात्।
त्रिपक्षे मंत्रसिद्धिः स्यात्स्तोत्रपाठाद्धि शंकरि।।
चतुर्द्दश्यां निशाभागे शनिभौमदिने तथा।
निशामुखे पठेत्स्तोत्रं मंत्रसिद्धिमवाप्नुयात्।।
केवलं स्तोत्रपाठाद्धि मंत्रसिद्धिरनुत्तमा।
जागर्तिं सततं चण्डी स्तोत्रपाठाद्भुजंगिनी।।
चण्डी स्तोत्र के लाभ (Labh / Benefits)
- मंत्र सिद्धि प्रदान करता है –
इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से मंत्रों में चैतन्य जाग्रत होता है और साधक को सिद्धि प्राप्त होती है। - भय, रोग, शत्रु और संकट का नाश –
देवी चण्डिका साधक को हर प्रकार के भय, रोग और शत्रुजनों से रक्षा करती हैं। - भौतिक एवं आध्यात्मिक सफलता –
यह स्तोत्र भौतिक सुख, धन, मान-सम्मान के साथ-साथ आध्यात्मिक उत्थान भी देता है। - मुक्ति एवं मोक्ष की प्राप्ति –
ग्रंथ में स्पष्ट कहा गया है — “पठित्वा मोक्षमाप्नोति सत्यं वै गिरिनन्दिनी।”
अर्थात इस स्तोत्र का पाठ करने वाला साधक मोक्ष प्राप्त करता है। - देवी की कृपा से सर्वसिद्धि प्राप्त होती है –
चाहे क्रिया साधन, भक्ति साधन, श्मशान साधन या तांत्रिक साधना हो — यह स्तोत्र सभी में सफलता देता है।
पाठ विधि (Vidhi / Method of Recitation)
उपयुक्त दिन और समय
- मंगलवार (कुजवार) या शनिवार (शनिदिन) की चतुर्दशी तिथि में इसका पाठ सर्वोत्तम है।
- विशेषकर रात्रिकाल में इसका पाठ अधिक प्रभावशाली माना गया है।
- “कुजवारे चतुर्द्दश्याममायां जीववासरे…” के अनुसार, इस दिन पाठ करने से मंत्रसिद्धि निश्चित होती है।
पाठ की विधि
- स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें (लाल या पीले रंग के शुभ माने जाते हैं)।
- देवी चण्डिका का चित्र, यंत्र या मूर्ति सामने स्थापित करें।
- दीपक जलाएं, पुष्प, धूप, नैवेद्य अर्पित करें।


























































