“श्री वेंकटेश्वर स्तोत्र” भगवान विष्णु के वेंकटेश्वर स्वरूप की स्तुति में रचा गया एक परम श्रद्धामय स्तोत्र है। यह स्तोत्र भगवान वेंकटेश (जो तिरुपति बालाजी के नाम से प्रसिद्ध हैं) की महिमा, करुणा और भक्तवत्सल स्वरूप का सुंदर वर्णन करता है।
यह स्तोत्र उनके दिव्य स्वरूप, सौंदर्य, दया और लीला का बखान करता है। इसमें भक्त भगवान से शरणागत होकर अपने दोषों की क्षमा माँगता है और उनके चरणों में अनन्य भक्ति के साथ स्थायी सेवा की प्रार्थना करता है।
इस स्तोत्र में भगवान को श्रीराम, श्रीकृष्ण और विष्णु के रूप में भी संबोधित किया गया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वेंकटेश्वर भगवान त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग – तीनों में भक्तों के उद्धार के लिए अवतरित होते हैं।
मुख्य विशेषताएँ:
- भक्त की गहन भक्ति और समर्पण की अभिव्यक्ति
- भगवान वेंकटेश्वर के सौंदर्य, करुणा, और परात्पर स्वरूप का वर्णन
- राम-कृष्ण रूपों की महिमा सहित विष्णु की सर्वव्यापकता का अनुभव
श्री वेंकटेश्वर स्तोत्र – हिंदी पाठ
कमलाकुच चूचुक कुंकमतो
नियतारुणि तातुल नीलतनो ।
कमलायत लोचन लोकपते
विजयीभव वेंकट शैलपते ॥
सचतुर्मुख षण्मुख पंचमुख
प्रमुखा खिलदैवत मौलिमणे ।
शरणागत वत्सल सारनिधे
परिपालय मां वृष शैलपते ॥
अतिवेलतया तव दुर्विषहै
रनु वेलकृतै रपराधशतैः ।
भरितं त्वरितं वृष शैलपते
परया कृपया परिपाहि हरे ॥
अधि वेंकट शैल मुदारमते-
र्जनताभि मताधिक दानरतात् ।
परदेवतया गदितानिगमैः
कमलादयितान्न परंकलये ॥
कल वेणुर वावश गोपवधू
शत कोटि वृतात्स्मर कोटि समात् ।
प्रति पल्लविकाभि मतात्-सुखदात्
वसुदेव सुतान्न परंकलये ॥
अभिराम गुणाकर दाशरधे
जगदेक धनुर्थर धीरमते ।
रघुनायक राम रमेश विभो
वरदो भव देव दया जलधे ॥
अवनी तनया कमनीय करं
रजनीकर चारु मुखांबुरुहम् ।
रजनीचर राजत मोमि हिरं
महनीय महं रघुराममये ॥
सुमुखं सुहृदं सुलभं सुखदं
स्वनुजं च सुकायम मोघशरम् ।
अपहाय रघूद्वय मन्यमहं
न कथंचन कंचन जातुभजे ॥
विना वेंकटेशं न नाथो न नाथः
सदा वेंकटेशं स्मरामि स्मरामि ।
हरे वेंकटेश प्रसीद प्रसीद
प्रियं वेंकटॆश प्रयच्छ प्रयच्छ ॥
अहं दूरदस्ते पदां भोजयुग्म
प्रणामेच्छया गत्य सेवां करोमि ।
सकृत्सेवया नित्य सेवाफलं त्वं
प्रयच्छ पयच्छ प्रभो वेंकटेश ॥
अज्ञानिना मया दोषा न शेषान्विहितान् हरे ।
क्षमस्व त्वं क्षमस्व त्वं शेषशैल शिखामणे ॥
॥ इति श्री वेंकटेश्वर स्तोत्र संपूर्णम् ॥
श्री वेंकटेश्वर स्तोत्र का हिंदी अनुवाद
कमल के समान वक्षस्थल पर कस्तूरी का लेप है,
आपका शरीर नीले कमल की तरह दमकता है।
आपके नेत्र भी कमल के समान हैं, हे लोकपति!
हे वेंकटाचल पर्वत के स्वामी! आप सदा विजयी हों॥1॥
ब्रह्मा, कार्तिकेय, शिव और अन्य समस्त देवताओं के मुकुटरत्न!
हे शरण में आए भक्तों पर प्रेम रखने वाले, दया के सागर!
हे वृषशैलपति! मेरी रक्षा कीजिए॥2॥
मैंने समय के साथ कई अपराध किए हैं,
जो अब असहनीय हो गए हैं।
हे वृषशैलपति! कृपा करके शीघ्र मेरी रक्षा कीजिए॥3॥
वेंकटाचल पर्वत पर स्थित उदार मन वाले प्रभु!
जो जनकल्याण हेतु सदा दान में अग्रणी हैं।
वेदों द्वारा वर्णित, लक्ष्मीपति – मैं किसी अन्य देवता को नहीं मानता॥4॥
जो बंसी बजाते हैं और जिनके आसपास करोड़ों गोपियाँ हैं,
जो करोड़ों कामदेवों के समान सुंदर हैं।
हर पल्लविनी की अभिलाषा को पूर्ण करने वाले,
हे वसुदेव के पुत्र! मैं किसी और को नहीं पूजता॥5॥
हे सुंदर गुणों के धनी, हे दशरथनंदन राम!
जो इस संसार के अद्वितीय धनुर्धारी हैं, धीर पुरुष हैं।
हे रघुवंश शिरोमणि, हे राम, हे रमेश!
हे दया के सागर देव! आप वर प्रदान करें॥6॥
जो सीता जी का कोमल हाथ थामे रहते हैं,
जिनका मुख चंद्रमा के समान आकर्षक है।
जो राक्षसों के राजा को पराजित करने वाले हैं,
हे रघुराम! आप मेरे लिए पूज्य हैं॥7॥
जो सुंदर मुख वाले हैं, मित्रवत हैं, सरलता से मिलते हैं,
सुख प्रदान करने वाले, अपने अनुज सहित हैं।
जिनके बाण कभी व्यर्थ नहीं जाते।
हे रघुवंशियों में श्रेष्ठ! मैं किसी अन्य को कभी नहीं पूजता॥8॥
वेंकटेश्वर के बिना मेरा कोई और स्वामी नहीं है।
मैं सदा वेंकटेश्वर का स्मरण करता हूँ।
हे हरि! हे वेंकटेश्वर! कृपा करें, कृपा करें।
हे प्रिय वेंकटेश! मुझे अपनी कृपा प्रदान करें॥9॥
मैं बहुत दूर से आया हूँ और आपके चरणों में प्रणाम की इच्छा रखता हूँ।
मैं सेवा करना चाहता हूँ।
आप केवल एक बार की सेवा से भी सदा का फल प्रदान करते हैं।
हे प्रभु वेंकटेश! मुझे वह फल दीजिए, दीजिए॥10॥
हे हरि! मुझसे अज्ञानवश जो भी अनेक दोष हुए हैं,
हे शेषाचल शिखर के रत्न! कृपया उन्हें क्षमा करें॥11॥
॥ इस प्रकार श्री वेंकटेश्वर स्तोत्र का हिंदी अनुवाद पूर्ण हुआ ॥
लाभ (Benefits):
1. मनोकामना पूर्ति:
श्री वेंकटेश्वर स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पाठ करने से मनोकामनाएँ शीघ्र पूर्ण होती हैं, विशेषकर धन, करियर, विवाह, और संतान से जुड़ी समस्याओं में।
2. जीवन में शांति और समृद्धि:
यह स्तोत्र मानसिक अशांति को दूर करता है और घर-परिवार में सुख-शांति व समृद्धि लाता है।
3. पापों का नाश:
स्तुति में वर्णित है कि भगवान अपने शरणागत भक्तों के सौ-सौ अपराधों को भी क्षमा कर देते हैं। यह स्तोत्र पापों का क्षालन करता है।
4. बाधा निवारण:
जीवन में आ रही अदृश्य बाधाओं, भय, ऋण, नौकरी में अड़चन आदि को दूर करने में यह अत्यंत प्रभावी है।
5. भक्ति और ईश्वर से जुड़ाव:
इसका पाठ मन को ईश्वर के चरणों में लगाता है, आत्मिक बल बढ़ाता है और भक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।
विधि (Pāṭh Vidhi):
1. स्थान:
शुद्ध, शांत और पवित्र स्थान में पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें। मंदिर, पूजा कक्ष या वेंकटेश्वर मंदिर सर्वोत्तम होता है।
2. समय:
प्रातः सूर्योदय के समय या सायंकाल दीपक जलाकर पाठ करें।
3. सामग्री:
- पीला वस्त्र (यदि संभव हो)
- भगवान वेंकटेश्वर की प्रतिमा/चित्र
- दीपक, अगरबत्ती, ताजे फूल, तुलसी पत्र
4. पूजा विधि:
- श्रीगणेश, लक्ष्मी और फिर वेंकटेश्वर भगवान को प्रणाम करें
- दीप प्रज्वलन करें और श्रद्धा से श्री वेंकटेश्वर स्तोत्र का पाठ करें
- अंत में आरती करें और प्रार्थना करें:
“हे वेंकटेश्वर! मेरी रक्षा करो, कृपा करो, मुझे अपनी शरण में लो।”
जाप का उपयुक्त समय (Best Time to Chant):
| समय | लाभ |
|---|---|
| ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4-6 बजे) | मानसिक शांति, आध्यात्मिक लाभ |
| प्रातःकाल (6-9 बजे) | दिनभर शुभता और ऊर्जा |
| सायंकाल (5-7 बजे) | पारिवारिक सुख-शांति, बाधा निवारण |
| विशेष रूप से शनिवार और गुरुवार | वेंकटेश्वर भगवान को अति प्रिय हैं |


























































