मत्स्य स्तोत्रम् भगवान विष्णु के प्रथम अवतार — मत्स्य रूप की स्तुति में रचा गया एक अत्यंत पवित्र स्तोत्र है। जब सृष्टि के प्रारंभ में महाप्रलय आया और वेद लुप्त हो गए, तब भगवान ने मछली (मत्स्य) का रूप धारण कर वेदों की रक्षा की और राजा सत्यव्रत (जो आगे चलकर वैवस्वत मनु बने) को धर्म और ज्ञान का उपदेश दिया। यह स्तोत्र उनके उसी दिव्य, रहस्यमय और कल्याणकारी रूप की महिमा का गान करता है।
इस स्तोत्र का पाठ संकटों से उबारने वाला है, यह भय, अज्ञान और विनाश से रक्षा करता है और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।
मत्स्य स्तोत्रम् (Matsya Stotram)
श्री गणेशाय नमः
नूनं त्वं भगवान् साक्षाद्धरिर्नारायणोऽव्ययः ।
अनुग्रहाय भूतानां धत्से रूपं जलौकसाम् ॥ १ ॥
नमस्ते पुरुषश्रेष्ठ स्थित्युत्पत्यप्ययेश्वर ।
भक्तानां नः प्रपन्नानां मुख्यो ह्यात्मगतिर्विभो ॥ २ ॥
सर्वे लीलावतारास्ते भूतानां भूतिहेतवः ।
ज्ञातुमिच्छाम्यदो रूपं यदर्थं भवता धृतम् ॥ ३ ॥
न तेऽरविन्दाक्ष पदोपसर्पणं
मृषा भावेत्सर्व सुहृत्प्रियात्मनः ।
यथेतरेषां पृथगात्मनां सतां
मदीदृशो यद्वपुरद्भुतं हि नः ॥ ४ ॥
॥ इति मत्स्य स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
मत्स्य स्तोत्रम् — हिंदी अनुवाद सहित (Matsya Stotram – with Hindi translation)
श्री गणेशाय नमः
नूनं त्वं भगवान् साक्षाद्धरिर्नारायणोऽव्ययः ।
अनुग्रहाय भूतानां धत्से रूपं जलौकसाम् ॥ १ ॥
अनुवाद:
निश्चित ही आप साक्षात भगवान नारायण हैं, जो अविनाशी हैं।
आप समस्त प्राणियों पर कृपा करने के लिए जल में रहने वाले मत्स्य (मछली) का रूप धारण करते हैं।
नमस्ते पुरुषश्रेष्ठ स्थित्युत्पत्यप्ययेश्वर ।
भक्तानां नः प्रपन्नानां मुख्यो ह्यात्मगतिर्विभो ॥ २ ॥
अनुवाद:
हे पुरुषश्रेष्ठ! हे सृष्टि, स्थिति और संहार के स्वामी! आपको नमस्कार है।
हे प्रभु! आप हमारे जैसे शरणागत भक्तों के लिए परम आश्रय हैं और आत्मा की परम गति भी हैं।
सर्वे लीलावतारास्ते भूतानां भूतिहेतवः ।
ज्ञातुमिच्छाम्यदो रूपं यदर्थं भवता धृतम् ॥ ३ ॥
अनुवाद:
आपके सभी अवतार लीलामय होते हैं और प्राणियों के कल्याण के लिए होते हैं।
हे प्रभु! मैं यह जानना चाहता हूँ कि आपने यह मत्स्य रूप किस उद्देश्य से धारण किया है।
न तेऽरविन्दाक्ष पदोपसर्पणं
मृषा भावेत्सर्व सुहृत्प्रियात्मनः ।
यथेतरेषां पृथगात्मनां सतां
मदीदृशो यद्वपुरद्भुतं हि नः ॥ ४ ॥
अनुवाद:
हे कमलनयन! आपके चरणों की प्राप्ति व्यर्थ नहीं होती,
क्योंकि आप सभी प्राणियों के सच्चे मित्र और प्रिय आत्मा हैं।
जैसे अन्य संतों के लिए भी आप अलग-अलग रूप में प्रकट होते हैं,
वैसे ही हमारे जैसे भक्तों के लिए भी आपका यह अद्भुत रूप बहुत आश्चर्यजनक और दिव्य है।
॥ इति मत्स्य स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
मत्स्य स्तोत्रम् के लाभ (Benefits)
- प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा – जैसे भगवान ने प्रलय से सृष्टि की रक्षा की, वैसे ही यह स्तोत्र विपत्ति में रक्षक है।
- अज्ञान और मोह का नाश – वेदों की रक्षा करने वाला यह स्तोत्र साधक में भी ज्ञान की ज्योति जाग्रत करता है।
- भय, दुर्घटना और जल-सम्बंधी कष्टों से मुक्ति
- राजकीय भय, मुकदमे या उच्च अधिकारियों के संकट में सफलता
- ध्यान और साधना में स्थिरता – यह स्तोत्र चित्त को एकाग्र करता है और साधना में सहायता करता है।
- विष्णु भक्ति में वृद्धि – विष्णु के प्रथम अवतार की स्तुति करने से भगवान के अन्य रूपों की कृपा भी सहज प्राप्त होती है।
पाठ विधि (Vidhi)
- स्नान और शुद्ध वस्त्र पहनें
- भगवान विष्णु, विशेषकर मत्स्यावतार का चित्र या प्रतिमा स्थापित करें
- दीप, धूप, पुष्प, अक्षत, नैवेद्य से पूजा करें
- आसन पर उत्तर या पूर्व की ओर मुख करके बैठें
- “ॐ नमो भगवते मत्स्याय” मंत्र से ध्यान करें
- फिर मत्स्य स्तोत्रम् का श्रद्धापूर्वक पाठ करें
- अंत में भगवान विष्णु की आरती करें – “जय विष्णु भगवान…”
- चाहें तो तुलसी पत्र अर्पित करें (विष्णु को अति प्रिय है)
जप/पाठ का उपयुक्त समय (Best Time)
- 🌅 प्रातःकाल – सूर्योदय से पूर्व या सूर्योदय के समय
- 🌙 या संध्या समय – सूर्यास्त के समय शांति से
- 📆 विशेष दिन:
- एकादशी, विष्णु-पर्व, प्रलय-प्रसंग, मकर संक्रांति
- चातुर्मास में नियमित पाठ विशेष फलदायक है
- 📿 अनुशंसा:
- कम से कम 7 दिन तक प्रतिदिन पाठ करें
- संकटकाल में 21 बार पाठ, या 11 मंगलवार/एकादशी तक करें


























































