श्री गणेश अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र भगवान गणेश के 108 पवित्र नामों की स्तुति है। यह स्तोत्र स्कंदपुराण के अनुसार शिवजी द्वारा त्रिपुरासुर के वध से पूर्व अपने पुत्र श्री गणेश की स्तुति के रूप में किया गया था।
यह नाम भगवान के विभिन्न दिव्य स्वरूपों, गुणों और कार्यों को दर्शाते हैं – जैसे कि वे विघ्नों के नाशक हैं, सिद्धियों के दाता हैं, बुद्धि और विवेक के स्वामी हैं।
श्री गणेश को “प्रथम पूज्य देव” माना जाता है। इसलिए यह स्तोत्र किसी भी शुभ कार्य, पूजा, व्रत या परीक्षा आदि से पहले पढ़ने से विशेष फलदायी होता है।
श्री गणेश अष्टोत्तर (Ganesha Ashtottara)
विनायको विघ्नराजो गौरीपुत्रो गणेश्वरः ।
स्कन्दाग्रजॊ व्ययः पूतः दक्षॊ यज्ञाध्यक्षो द्विजप्रियः ॥ १ ॥
अग्निगर्भच्छिदिन्द्रश्रीप्रदो वाणीप्रदोऽव्ययः ।
सर्वसिद्धिप्रदश्शर्वतनयः शर्वरीप्रियः ॥ २ ॥
सर्वात्मकः सृष्टिकर्ता देवो नेकार्चितः शिवः ।
शुद्धो बुद्धिप्रियः शान्तो ब्रह्मचारी गजाननः ॥ ३ ॥
द्वैमात्रेयो मुनिस्तुत्यः भक्तविघ्नविनाशनः ।
एकदन्तश्चतुर्बाहुः चतुरः शक्तिसंयुतः ॥ ४ ॥
लम्बोदरः शूर्पकर्णः हरिः ब्रह्मविदुत्तमः ।
कालो ग्रहपतिः कामी सोमसूर्याग्निलोचनः ॥ ५ ॥
पाशाङ्कुशधरश्चण्डः गुणातीतो निरञ्जनः ।
अकल्मषः स्वयंसिद्धः सिद्धार्चितपदाम्बुजः ॥ ६ ॥
बीजपूरफलासक्तो वरदः शाश्वतः कृती ।
द्विजप्रियः वीतभयः गदी चक्री इक्षुचापधृत् ॥ ७ ॥
श्रीदः उत्पलकरः श्रीपतिः स्तुतिहर्षितः ।
कुलाद्रिभेत्ता जटिलः कलिकल्मषनाशनः ॥ ८ ॥
चन्द्रचूडामणिः कान्तः पापहारी समाहितः ।
आश्रितश्रीकरः सौम्यः भक्तवांछितदायकः ॥ ९ ॥
शान्तः कैवल्यसुखदः सच्चिदानन्दविग्रहः ।
ज्ञानी दयायुतो दान्तः ब्रह्मद्वेषविवर्जितः ॥ १० ॥
प्रमत्तदैत्यभयदः श्रीकण्ठः विबुधेश्वरः ।
रमार्चितः विधिः नागराज यज्ञोपवीतवान् ॥ ११ ॥
स्थूलकण्ठः स्वयङ्कर्ता सामघोषप्रियः परः ।
स्थूलतुण्डः उग्रणीः धीरः वागीशः सिद्धिदायकः ॥ १२ ॥
दूर्वाबिल्वप्रियः अव्यक्तमूर्तिः अद्भुतमूर्तिमान् ।
शैलेन्द्रतनुजोत्सङ्गखेलनोत्सुकमानसः ॥ १३ ॥
स्वलावण्यसुधासारः जितमन्मथविग्रहः ।
समस्तजगदाधारः मायी मूषकवाहनः ॥ १४ ॥
हृष्टः तुष्टः प्रसन्नात्मा सर्वसिद्धिप्रदायकः ।
अष्टोत्तरशतेनैवं नाम्नां विघ्नेश्वरं विभुम् ॥ १५ ॥
तुष्टाव शङ्करः पुत्रं त्रिपुरं हन्तुमुत्यतः ।
यः पूजयेदनेनैव भक्त्या सिद्धिविनायकम् ॥ १६ ॥
दूर्वादलैः बिल्वपत्रैः पुष्पैः वा चन्दनाक्षतैः ।
सर्वान्कामानवाप्नोति सर्वविघ्नैः प्रमुच्यते ॥ १७ ॥
॥ इति श्री गणेश अष्टोत्तर सम्पूर्णम् ॥
श्री गणेश अष्टोत्तर हिंदी अनुवाद (Shri Ganesh Ashtottara Hindi translation)
(भगवान गणेश के 108 नामों का अर्थ सहित स्तुति)
वे विनायक हैं, विघ्नों के राजा हैं, गौरी के पुत्र हैं, गणों के स्वामी हैं,
स्कन्द (कार्तिकेय) के अग्रज हैं, अविनाशी हैं, पवित्र हैं, दक्ष के यज्ञ के अध्यक्ष हैं, और ब्राह्मणों को प्रिय हैं ॥१॥
वे अग्नि से उत्पन्न गर्भ को नष्ट करने वाले हैं, इन्द्र की लक्ष्मी प्रदान करने वाले हैं, वाणी (सरस्वती) के दाता हैं,
सर्व सिद्धियों के प्रदाता हैं, शिव के पुत्र हैं और रात्रि को प्रिय हैं ॥२॥
वे सम्पूर्ण आत्मा हैं, सृष्टि के कर्ता हैं, अनेक देवताओं द्वारा पूजित हैं, शिव हैं,
शुद्ध हैं, बुद्धि को प्रिय हैं, शांत हैं, ब्रह्मचारी हैं और गजमुख हैं ॥३॥
दो माताओं (गौरी और गंगा) से उत्पन्न हैं, मुनियों द्वारा स्तुत्य हैं, भक्तों के विघ्नों को नष्ट करने वाले हैं,
एकदंत हैं, चार भुजाओं वाले हैं, चार प्रकार की शक्तियों से युक्त हैं ॥४॥
लंबोदर हैं, बड़े कान वाले हैं, हरि और ब्रह्मा से श्रेष्ठ हैं, काल स्वरूप हैं, ग्रहों के स्वामी हैं,
कामुक हैं, जिनकी आंखें चंद्र, सूर्य और अग्नि जैसी हैं ॥५॥
पाश और अंकुश धारण करने वाले हैं, उग्र हैं, गुणों से परे हैं, निराकार हैं,
निष्पाप हैं, स्वयं सिद्ध हैं, सिद्धों द्वारा पूजित चरणकमलों वाले हैं ॥६॥
बीज, बेल और फलों को प्रिय मानते हैं, वर देने वाले हैं, शाश्वत हैं, शुभ कर्म करने वाले हैं,
ब्राह्मणों को प्रिय हैं, भय से मुक्त करने वाले हैं, गदा, चक्र और शरचाप धारण करने वाले हैं ॥७॥
श्री (लक्ष्मी) देने वाले हैं, कमल के फूल को धारण करने वाले हैं, लक्ष्मीपति हैं, स्तुतियों से प्रसन्न होते हैं,
कुल पर्वत को विदीर्ण करने वाले हैं, जटाजूटधारी हैं, कलियुग के पापों का नाश करने वाले हैं ॥८॥
चंद्र को मस्तक पर धारण करने वाले हैं, मनोहर हैं, पापों का हरण करने वाले हैं, मन को केंद्रित करने वाले हैं,
शरणागतों को श्री (संपत्ति) देने वाले हैं, सौम्य हैं, भक्तों की इच्छाओं को पूरा करने वाले हैं ॥९॥
शांत हैं, मोक्ष देने वाले हैं, सत्-चित्-आनंद स्वरूप हैं, ज्ञानी हैं, करुणा से युक्त हैं,
इंद्रियों को संयमित करने वाले हैं और ब्रह्म-द्वेष से रहित हैं ॥१०॥
उन्मत्त दैत्यों को भय देने वाले हैं, शिवगले के हार के समान हैं, देवताओं के ईश्वर हैं,
लक्ष्मी द्वारा पूजित हैं, नियम के अनुसार पूजित होते हैं, नागराज के यज्ञोपवीत धारण किए हुए हैं ॥११॥
मोटे गले वाले हैं, स्वयं अपने रचयिता हैं, सामवेद के स्वर पसंद करने वाले हैं, परात्पर हैं,
मोटे सूंड वाले हैं, अग्रणी हैं, धीर हैं, वाणी के स्वामी हैं और सिद्धि प्रदान करने वाले हैं ॥१२॥
दूर्वा और बिल्वपत्र प्रिय हैं, अप्रकट रूप वाले हैं, अद्भुत रूप वाले हैं,
पर्वतराज की पुत्री (पार्वती) की गोद में खेलने के इच्छुक हैं ॥१३॥
सुंदरता की अमृतधारा जैसे हैं, कामदेव को भी जीत लेने वाले हैं,
समस्त जगत के आधार हैं, मायावी हैं और मूषक (चूहे) पर सवारी करते हैं ॥१४॥
हृष्ट-पुष्ट हैं, संतुष्ट हैं, प्रसन्न आत्मा हैं, सभी सिद्धियाँ देने वाले हैं,
इन 108 नामों से विघ्नेश्वर भगवान का स्तवन किया गया है ॥१५॥
जब शिव त्रिपुरासुर का वध करने जा रहे थे, तब उन्होंने अपने पुत्र गणेश की इन नामों से स्तुति की थी,
जो व्यक्ति श्रद्धा से इस स्तोत्र द्वारा सिद्धिविनायक की पूजा करता है, वह सभी सिद्धियाँ प्राप्त करता है ॥१६॥
जो व्यक्ति दूर्वा, बिल्वपत्र, पुष्प, चंदन या अक्षत से भगवान गणेश की पूजा करता है,
वह सभी इच्छाओं को प्राप्त करता है और समस्त विघ्नों से मुक्त हो जाता है ॥१७॥
॥ इस प्रकार श्री गणेश अष्टोत्तर नामावली सम्पूर्ण हुई ॥
लाभ (फल)
- विघ्नों का नाश: जीवन में आने वाले विघ्न-बाधाओं का निवारण होता है।
- बुद्धि और विवेक की प्राप्ति: विद्यार्थियों और ज्ञान seekers को विशेष लाभ होता है।
- कार्यसिद्धि: व्यापार, नौकरी, परीक्षा, विवाह आदि में सफलता मिलती है।
- धन, यश और सुख की वृद्धि: लक्ष्मी की प्राप्ति और कुल वृद्धि होती है।
- मनोवांछित फल की प्राप्ति: जो भी श्रद्धा से जप करता है, उसे मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं।
- पितृदोष और ग्रहबाधा से मुक्ति: यह स्तोत्र ग्रहदोषों को शांत करता है।
पारायण विधि (जाप विधि)
- स्थान: साफ-सुथरे स्थान पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- समर्पण: श्री गणेशजी की मूर्ति/चित्र के सामने दीपक जलाकर चंदन, पुष्प, दूर्वा और नैवेद्य अर्पित करें।
- संकल्प: अपने मनोकामना के अनुसार संकल्प लें।
- जप: पूरे ध्यान और श्रद्धा के साथ 108 नामों का उच्चारण करें।
- अंत में: “विघ्नेश्वराय नमः” कहकर प्रार्थना करें और आरती करें।
👉 यदि आप माला से जप कर रहे हैं, तो 1 माला (108 बार) प्रति दिन करने से उत्तम फल मिलता है।
जाप का श्रेष्ठ समय
- प्रातः काल: सूर्योदय से पहले या सूर्योदय के समय (ब्राह्ममुहूर्त)।
- मंगलवार और चतुर्थी तिथि: गणेशजी का प्रिय दिन होने से इस दिन जप करना विशेष फलदायी होता है।
- गणेश चतुर्थी या संकष्टी चतुर्थी: इन तिथियों पर जाप का कई गुना पुण्य फल प्राप्त होता है।


























































